The Diplomat Review Hindi: क्या है उजमा अहमद की कहानी?

The Diplomat: जॉन अब्राहम की 'The Diplomat' महिला सशक्तिकरण के नाम पर मर्दानगी का महिमामंडन या सच्चाई से मुंह मोड़ता एक दिखावा?

The Diplomat Review Hindi focusing on Uzma Ahmed's real story and John Abraham's role
एक बार फिर, Bollywood एक True Story को बड़े पर्दे पर लाने का कोशिश कर रहा है। John Abraham की The Diplomat इस फिल्म में भारत के Deputy High Commissioner JP Singh की भूमिका निभाते हैं। दर्शकों को फिल्म का ट्रेलर आने से ही उत्सुकता थी कि फिल्म Pakistan में फंसी एक भारतीय महिला उजमा अहमद की दर्दनाक लेकिन साहसी कहानी कैसे बताएगी।

Film रिलीज होने पर दर्शकों और समीक्षकों के मत लगभग समान रहे। Women Empowerment की कहानी कहते हुए भी, "The Diplomat" एक बार फिर पुरुष नायकों का महिमामंडन करता है। फिल्म का सबसे बुरा पक्ष यह है कि यह उजमा अहमद नामक साहसी महिला की कहानी को John Abraham के किरदार के नजरिए से नहीं बताती। 

वास्तविक उजमा अहमद की कहानी क्या है?

फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है, जिसमें एक भारतीय महिला उजमा अहमद की जिंदगी ने भयानक परिवर्तन किया है। मलेशिया में काम करते समय उजमा ने ताहिर अली नामक एक Pakistani टैक्सी चालक से मुलाकात की। ताहिर ने खुद को एक अच्छे आदमी और सच्चे प्रेमी के रूप में दिखाया। ताहिर और उजमा की मित्रता बढ़ी और कुछ समय बाद उजमा को पाकिस्तान बुलाकर शादी करने का प्रस्ताव दिया।

हालाँकि, Pakistan पहुंचते ही उजमा के सपने टूट गए। ताहिर ने उजमा को खैबर पख्तूनख्वा के एक दूरस्थ गांव में ले गया, जहां उसे बंधक बनाकर रखा गया। जब उजमा को पता चला कि ताहिर एक मानव तस्करी रैकेट चलाता है जो उजमा सहित कई महिलाओं को कैद करता है, तो उसका असली चेहरा सामने आया।

उजमा, हालांकि, हार नहीं मानी। उसने साहस और विवेक से काम लेते हुए पाकिस्तान से भारत लौटने की योजना बनाई। पूरी घटना के दौरान, उजमा खुद अपनी शक्ति से उबरीं और भारतीय दूतावास पहुंचने में सफल रहीं।

फिल्मी कहानी में जॉन अब्राहम के किरदार की ओर क्यों ध्यान दिया गया है?

The Diplomat

"The Diplomat" फिल्म उजमा अहमद की कहानी को लेकर दर्शकों को एक सशक्त महिला नायक की कहानी बताती है, लेकिन फिल्म का मुख्य ध्यान जेपी सिंह (John Abraham) पर है। फिल्म में जेपी सिंह की निजी जीवन, उनकी बैकस्टोरी और उनके बेटे के साथ बातचीत जैसे अनावश्यक ट्रैक पर अधिक समय दिया गया है, जिससे उजमा की पीड़ा, संघर्ष और जद्दोजहद को फ्लैशबैक में दिखाया गया है।

फिल्म का सबसे बड़ा सवाल यही है कि जेपी सिंह की नजरों से उजमा की कहानी क्यों दिखाई जाती है? उजमा को अपने लिए खड़े होने का अवसर क्यों नहीं दिया गया? फिल्म में उजमा को जेपी सिंह के सहारे बार-बार साहस दिखाने की प्रेरणा क्यों मिलती है?

Bollywood Cinema में ऐसी film नई नहीं हैं। पुरुष नायक ने पहले भी कई film में महिला केंद्रित स्टोरी दिखाई है। 'सत्यप्रेम की कथा', 'बवाल', 'Mr. & Mrs. Mahi' जैसी फिल्में इस प्रवृत्ति का नया उदाहरण हैं।

Film Making की कमियां

Shivam Nayar, जो ज्यादातर OPS जैसी Web Series के लिए Famous हैं, उन्होंने "The Diplomat" के डायरेक्टर है। लेकिन इस बार उनका डायरेक्शन भटका हुआ और असंतुलित लगता है। फिल्म का पहला हाफ एक शांत, कोर्टरूम ड्रामा की तरह चलता है, लेकिन दूसरा हाफ अचानक Action में बदल जाता है।

Film के लास्ट में, JP Singh खुद गाड़ी चलाकर उजमा को Pakistan से बाहर निकालते हैं और दुश्मनों से लड़ते हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि अगर कार्रवाई ही करना था, तो पहले क्यों नहीं किया? फिल्म अपने ही तर्कों और लॉजिक को नहीं मानती।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

फिल्म रिलीज होते ही दर्शकों और आलोचकों ने सोशल मीडिया पर उत्साहजनक प्रतिक्रिया व्यक्त की। फिल्म उजमा अहमद की कहानी को जॉन अब्राहम की बायोपिक बनाने के लिए कुछ लोगों ने इसे "एक मिस्ड अपॉर्च्युनिटी" कहा।'

कई महिला संगठनों ने फिल्म के नैरेटिव पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह एक पुरुष पात्र के नजरिए से उजमा अहमद जैसी साहसी महिला की कहानी को दिखाता है, जो उसकी असली संघर्ष गाथा को कमजोर कर देता है।

महिला पात्रों का बॉलीवुड में कब सुधार होगा?

The Diplomat एक बार फिर बताता है कि बॉलीवुड में महिला चरित्रों को कहानियों का केंद्र नहीं बनाया जाता। वे अभी भी किसी पुरुष पात्र की पीड़ा और विकास का कारण हैं, या फिर उन्हें रक्षक की जरूरत है।

"Mad Max: Fury Road" जैसी Hollywood Movie से सीख लेनी चाहिए, असली कहानी Furiosa की है। और जिसमें Max, मुख्य पुरुष पात्र, केवल एक सहायक भूमिका में है। लेकिन 'The Diplomat' में ऐसा नहीं होता।

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निष्कर्ष

वास्तविक घटना पर आधारित होने के बावजूद, फिल्म 'The Diplomat' दर्शकों के साथ अन्याय करती है। यह उजमा अहमद की साहस और संघर्ष की कहानी को दिखाने के बजाय जॉन अब्राहम के लिए एक हीरोइक प्लेटफॉर्म बन जाता है।
यह फिल्म एक बार फिर बताती है कि बॉलीवुड में अभी भी सच्चे महिला सशक्तिकरण को दिखाने का साहस नहीं हुआ है। भारतीय सिनेमा भविष्य में इस प्रवृत्ति से बाहर निकलेगा और उजमा अहमद जैसी महिलाओं की सच्ची कहानी को अपने तरीके से बताने का साहस करेगा।

उजमा की कहानी भी जेपी सिंह के लिए एक मिशन बन जाती है।

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